MP में संवैधानिक संस्थाओं और सरकार के बीच तकरार, सिफारिशों पर अमल न होने से आयोग नाराज़

प्रदेश में काम कर रहे आयोग की सिफारिशों पर सरकार अमल की सुस्त चाल से अब नया बखेड़ा खड़ा होता दिख रहा है.
बीजेपी (bjp) का कहना है आयोगों में हुई राजनीतिक नियुक्तियां स्वार्थ की राजनीति के तहत की गई हैं ऐसे में आयोग (ayog) की सिफारिशों को मानने के लिए सरकार बाध्य नहीं है
मध्य प्रदेश में सत्ता बदलते ही सरकार और आयोगों के बीच खींचतान शुरू हो गई थी. कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होने और बीजेपी के सत्ता में वापस आने के बाद राज्य सरकार ने पूर्व की सरकार में आयोगों में हुई राजनीतिक नियुक्तियों को निरस्त करने का फैसला किया था. लेकिन मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति बरकरार रखने का अंतरिम आदेश जारी कर दिया. उसके बाद आयोग में नियुक्त अध्यक्ष और सदस्यों ने कामकाज संभालते हुए फैसले लेना शुरू कर दिया.
नागवार गुजरीं सिफारिश
राज्य महिला आयोग, राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग, युवा आयोग और पिछड़ा वर्ग आयोग ने प्रदेश में घट रही घटनाओं पर तेजी के साथ संज्ञान लेते हुए सरकार को अपनी सिफारिशें और जरूरी कार्रवाई के लिए पत्र भेजना शुरू कर दिया. बस यही बात शिवराज सरकार को नागवार गुजर गयी.हालात यह रहे की आयोगों की सरकार को भेजी गई सिफारिशों पर ना तो अमल हुआ और ना ही कोई जवाब दिया गया.संवैधानिक संस्थाओं का अपमान!
राज्य अनुसूचित जाति आयोग के सदस्य प्रदीप अहिरवार का कहना है कि आयोग ने गुना मामले में दलित किसान की पिटाई पर राज्य सरकार से 15 दिन में रिपोर्ट तलब की थी. लेकिन रिपोर्ट का अब तक कोई जवाब नहीं मिला.इसके अलावा आयोग ने कई सुझाव सिफारिशें सरकार को भेजी उन पर अमल तो दूर पत्रों का जवाब भी सरकार की तरफ से नहीं आया. ये सीधे तौर पर संवैधानिक संस्थाओं का अपमान है.
4 महीने का ब्यौरा…
-शराब दुकानों पर महिला कर्मचारियों की ड्यूटी नहीं लगाने
-प्रदेश के मंत्री तुलसीराम सिलावट से सवाल पूछने के मामले में मामले में राज्य महिला आयोग ने सरकार को पत्र लिखा.
-राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने गुना मामले में सरकार से 15 दिन में रिपोर्ट मांगी और एट्रोसिटी एक्ट के तहत मामला दर्ज करने को कहा
-बड़वानी में महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना पर महिला आयोग ने राज्य सरकार को पत्र लिखा
मनमानी का आरोप
सरकार की ओर से संवैधानिक संस्थाओं के पत्रों का जवाब नहीं मिलने पर कांग्रेस ने एतराज जताया है. उसने इसे संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ बताया है. कांग्रेस विधायक कुणाल चौधरी ने कहा राज्य सरकार को संवैधानिक व्यवस्था का पालन करना चाहिए, लेकिन सरकार मनमानी करने पर लगी हुई है.
सरकार बाध्य नहीं!
प्रदेश सरकार का दावा है कि प्रदेश में जो भी आयोग काम कर रहे हैं उनके सुझावों पर सरकार अमल कर रही है. जबकि बीजेपी का कहना है आयोगों में हुई राजनीतिक नियुक्तियां स्वार्थ की राजनीति के तहत की गई हैं ऐसे में आयोग की सिफारिशों को मानने के लिए सरकार बाध्य नहीं है.
आयोग की जिम्मेदारी
प्रदेश में काम कर रहे आयोगों को संवैधानिक दर्जा हासिल है और आयोगों की जिम्मेदारी है कि वह अपने कार्य क्षेत्र के दायरे में आने वाली घटनाओं पर संज्ञान लेते हुए तत्काल कार्रवाई कर सरकार का ध्यान आकर्षित करें. साथ ही लोगों को न्याय दिलाने की भी जिम्मेदारी आयोगों के ऊपर है. लेकिन प्रदेश में काम कर रहे आयोग की सिफारिशों पर सरकार अमल की सुस्त चाल से अब नया बखेड़ा खड़ा होता दिख रहा है. राज्य अनुसूचित जाति आयोग में अध्यक्ष आनंद अहिरवार के कक्ष में ताला डालकर आयोग और सरकार के बीच तकरार हो चुकी है. इसके जल्द थमने के आसार नहीं हैं.